Sunday, September 19, 2010

गंगा बहती हो क्यों !!

रचना: पंडित नरेंद्र शर्मा
स्वर: भूपेन हजारिका


बिस्तेर्नो वरोरे, अफंख्या अनोरे, हाहाकार सुनियो निसब्द्थ निरोवेय
भुरल हुई तुम्ही, भुरल हुई बुरा की और ....

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यों

नैतिकता नष्ट हुयी, मानवता भ्रष्ट हुयी
निर्लज्ज भाव से बहती हो क्यों

इतिहास की पुकार करे हुंकार
ओ गंगा की धार निर्बल जन को
सबल संग्रामी समग्र गामी बनाती नहीं हो क्यों

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों

अनपढ़ जन अक्षरहीन, अनगिन जन खाद्य विहीन
नेत्र विहीन देख मौन हो क्यों

इतिहास की पुकार करे हुंकार
ओ गंगा की धार निर्बल जन को
सबल संग्रामी समग्र गामी बनाती नहीं हो क्यों

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यों

व्यक्ति रहे व्यक्ति केंद्रित, सकल समाज व्यक्तित्व रहित
निश्प्राण समाज को तोड़ती न क्यों

इतिहास की पुकार करे हुंकार
ओ गंगा की धार निर्बल जन को
सबल संग्रामी समग्र गामी बनाती नहीं हो क्यों

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यों

श्रुतस्विनी क्यों न रहीं, तुम निश्चय चेतन नहीं
प्राणों में प्रेरणा देती न क्यों, उन्मद अवनी कुरुक्षेत्र बनी
गंगे जननी नव भारत में, भीष्मरूपी सुतसमरजयी जनती नहीं हो क्यों

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार
करे हाहाकार निःशब्द सदा
ओ गंगा तुम, गंगा बहती हो क्यों !!

- भूपेन हजारिका


यू ट्यूब वीडियो:
गंगा बहती हो क्यों !! - 1
गंगा बहती हो क्यों !! - 2